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Women’s Day:  आइए सराहना करें उनकी जो सिर्फ एक ‘घरेलू महिला’ है

वो महिला जिसका हर दिन सुबह से लेकर रात तक अपने पति, बच्चों और परिवार को समर्पित होता है.

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Housewife
आप किसी बच्चे से पूछिए कि बेटे आपकी मम्मी क्या करती हैं? अक्सर वो कुछ सोचते हुए कह देता है- कुछ नहीं! क्यों? क्यूंकि उसकी मम्मी हाउसवाइफ है. अगर हम ये कहें कि घर संभालना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है तो शायद गलत नहीं होगा. दुनिया में सिर्फ यही एक ऐसा पेशा है, जिसमें 24 घंटे, सातों दिन आप काम पर रहते हैं. हर रोज क्राइसिस झेलते हैं, सुबह से लेकर रात तक कई काम निपटाते हैं, हर डेडलाइन को पूरा करते हैं और वो भी बिना छुट्टी के. सोचिए, बदले में आपको एक चवन्नी मिलना तो दूर, बच्चा यह कह दे कि मम्मी कुछ नहीं करती तो दिल को इससे ज्यादा शायद ही किसी और बात से बुरा लगे. लेकिन गलती बच्चे की नहीं हम सबकी है जो आज तक उस हाउसवाइफ की अहमियत नहीं जान पाए.

वो महिला जिसका हर दिन सुबह से लेकर रात तक अपने पति, बच्चों और परिवार को समर्पित होता है. जिसके लिए साल के 365 दिन लगभग एक जैसे ही होते हैं. वो महिला जिसके लिए कोई वीकेंड नहीं. यहां बात उन महिलाओं के समूह की हो रही हैं जिन्हें समाज ने नाम दिया है घरेलू महिला!……

जिनके लिए हम अक्सर यही सुनते रहते हैं कि घर पर बैठे-बैठे आप काम ही क्या करती हैं? कई संस्थानों की रिसर्च रिपोर्ट के हिसाब से अगर हाउसवाइफ को उनके काम के बदले सैलरी दी जाए तो उन्हें सालाना कम से कम 4 लाख रुपये मिलने चाहिए. लेकिन क्या वो हमसे कुछ डिमांड करती हैं शायद नहीं! उन्हें सैलरी नहीं बल्कि सिर्फ सराहना चाहिए.

Women's Day

आज ‘महिला दिवस’ है. ऑफिस में, स्कूल, कॉलेज में सभी औरतों को कहीं बधाइयाँ, कहीं गिफ्ट तो कहीं पार्टी दी जा रही होगी. भले ही ये एक दिन के लिए ही होता है, लेकिन गर्व महसूस होता है उस स्पेशल डे पर जब ख़ासतौर पर कोई आपके लिए कुछ स्पेशल करे. तो क्या सिर्फ यहीं महिलाएं बधाई और गिफ्ट के लायक हैं? वो महिलाएं नहीं जो हमारे लिए बिना किसी सैलरी के इतना कुछ करती हैं. आज इस ख़ास मौके पर आपको मिलवाते है इन हाउसवाइफ से जिनके लिए हम ये कहने में सोचते नहीं हैं कि कुछ नहीं कर रही हैं.

सिर्फ घरेलू महिला?

यह वही महिला है जो दूसरी औरतों के बाहर जाने, उनके काम करने में खुश होती है. ये वो औरतें हैं जो ‘महिला दिवस’ के दिन घर में अकेले बैठ घर के सारे काम निपटाने के बाद या तो अखबार पढ़ सकती हैं या टीवी देखकर यह महसूस कर सकती हैं कि आज तुम्हारे सम्मान का दिन है. वो भी दूसरी औरतों के जैसे काम कर सकती हैं लेकिन वो अपनों के लिए जीती हैं. फिर क्यों वही समाज जिसमें वह रहती है वहां उन्हें अपने लिए दूसरी महिलाओं से सम्मान, अच्छा व्यवहार बातों में नहीं दिखता है.

एक घरेलू महिला खुद भी यही मान लेती है कि महिला दिवसपर सम्मान का हक तो सिर्फ उन महिलाओं का है जिन्होंने घर से बाहर निकल कुछ काम किया हैं.

Housewife Salary

सिर्फ घरेलू महिला?

इन महिलाओं ने घर, परिवार की हर छोटी-बड़ी जरूरत को पूरा करते हुए अपना जीवन बिता दिया, अपनी जरूरतों से पहले दूसरों की मांगें पूरी की. जो खुद के लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाई. कभी खुद के लिए सोचना शुरू किया तो घर फिर से अस्त-व्यस्त हो गया. लोगों से और उन्हीं फॅमिली मेम्बर से ताने मिले कि पत्नी, बहू और मां होने की जिम्मेदारी से भागकर अपने शौक पूरे करने निकल गई. ऐसी बेपरवाह कैसे हो सकती हो. जब इस घरेलू महिला ने सम्मान पाने के लिए कुछ करना चाहा तो वो दूसरों के ऐसे नजरिए का शिकार क्यों हुई.

एक पत्नी, मां, बहन, बेटी, बहू होने से पहले औरत एक इंसान भी है. जिसकी अपनी कुछ जरूरतें हैं, वैसे ही जैसे किसी पुरुष की होती है. घरेलू होते हुए भी उसके भी कई शौक या इच्छा हो सकती है जिन्हें पूरा करने का उसे हक है.

सिर्फ घरेलू महिला?

वो महिलाएं जो घर पर किसी के बीमार होने पर सिर्फ डॉक्टर को फोन करने का काम नहीं करती बल्कि घंटों उनके क्लीनिक में लाइन में भी लगती हैं. छोटी-मोटी बिमारी में तो कब क्या चाहिए आपको वो बिना कहे समझ जाती हैं.  पूरी तरह से आपको सिर्फ आराम देती हैं क्यों? क्यूंकि आपको कल सुबह ऑफिस या स्कूल, कॉलेज जाना होगा. यहीं इनके बीमार होने पर पहले तो आपके घर के सभी काम रुक जाएंगे फिर भी आप यही कहोगे की डॉक्टर को क्यों नहीं दिखा के आती? आज दिन में चली जाना डॉक्टर के पास.

Multitasking Moms

हां आप ये भी कह सकते हो कि रुको मैं तुमको खाना बना के दे देता हूं, आज मैं घर की जिम्मेदारी ले लेता हूं. तुम मेरे साथ चलो डॉक्टर के पास. ऐसा अक्सर क्यों होता है कि डॉक्टर के पास न जाने पर भी हम उन्हीं को दोष देते हैं. दिनभर क्या किया दिखा लेती एक बार डॉक्टर को.

सिर्फ घरेलू महिला?

एक बच्चा होने पर आप दोनों ही माता-पिता बने लेकिन बच्चे को पालने व देखरेख करने की सारी जिम्मेदारी आदर्श स्त्री और मां होने की परिभाषा में ही डाल दी गई. पति के जीवन में कोई अधिक बदलाव नहीं आया और वे अब भी पहले ही की तरह ऑफिस जाते हैं. नई चीजें सीखने, अपने ही शारीरिक और मानसिक विकास पर ध्यान देते हैं और यही कहना होता हैं परिवार की ज्यादा जिम्मेदारी मुझ पर आ गई है. अपने ही बच्चे की देखरेख करने में आज भी पुरुष-प्रधान समाज के पुरुषों को शर्म महसूस होती है.

Parenting

अपने बच्चों की जरूरतें पैसे से पूरा करना ही एक मात्र पैरामीटर नहीं होता अच्छे माता-पिता होने का. समाज में एक स्त्री के आदर्श होने के कई मानक हैं लेकिन पुरुषों के नहीं.

सिर्फ घरेलू महिला? एक जिम्मेदार महिला

एक स्त्री का जीवन चाहे-अनचाहे, खासकर शादी के बाद बेड़ियों में बंधने पर मजबूर क्यों हो जाता है. लेकिन वो इसको बेड़ियां नहीं अपना सौभाग्य मान कर संभालती हैं. घरेलू महिला ‘त्याग और बलिदान की मूरत’ ये किसी बुक का टाइटल मात्र ही अच्छा लगता है. किसने ये परिभाषा लिखी? जो आज भी इस के नाम पर करोड़ों औरतें अपनी खुशियों का गला घोंट रही हैं. ये लाइन हम सबने सुनी हैं पर इसका मतलब नहीं समझ पाएं हैं. एक घरेलू महिला का काम बहुत आसान नहीं होता है. फिर भी हम यही कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कर रहीं. इतना सारा काम करने के बाद भी अगर आपको ये महिलाएं सिर्फ घरेलू महिलाएं लगती हैं तो थोड़ी परिभाषा आज से बदलते हैं ये सिर्फ घरेलू महिला? नहीं बल्कि जिम्मेदार महिलाएं हैं.

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