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वो जीवन है, मृत्यु भी!….जानिए बाबा शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में

राम भी उसका रावण उसका, जीवन उसका मरण भी उसका तांडव है और ध्यान भी वो है, अज्ञानी का ज्ञान भी वो है....

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राम भी उसका रावण उसका, जीवन उसका मरण भी उसका

तांडव है और ध्यान भी वो है, अज्ञानी का ज्ञान भी वो है….

हर-हर महादेव….ये एक ऐसा जादुई मंत्र या जीवन का आधार कह लीजिए, जो मेरे कानों के साथ-साथ दिल और दिमाग को सुकून देता हैं. जब भी किसी मंदिर, शिवालयों में हर हर महादेव गूँज रहा होता है तो आपको नहीं लगता हमारे अंदर एक अजीब सा वाइब्रेशन हो रहा है. मेरे साथ होता है ऐसा! कहते हैं बाबा शिव एक ऐसे भगवान है जो बहुत जल्द हमसे प्रसन्न हो जाते हैं. इनके व्रत, उपवास में कोई कठिन तप नहीं करना पड़ता. वैसे तो सभी दिन भगवान के हैं लेकिन आध्यात्मिक पहलू से देखा जाए तो सावन के महीने को हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व दिया गया हैं. सावन का महीना पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित रहता है. इस महीने में शिवजी की आराधना करने से जीवन से मृत्यु तक के सभी कष्ट दूर हो जातें हैं.

मैं आस्था, साधना में अटूट विश्वास रखती हूं. बचपन से मेरा मानना है की कोई अद्रश्य शक्ति है जो हमारे साथ रहती है. बाबा शिव एक ऐसी ही शक्ति हैं जिनका अभी तक न तो कोई आरंभ पता कर पाया है और ना ही अंत. हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रकट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है. तो आइए जानते है भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में :

1- श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

– सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है. ये मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में हैं. यहां पर मुख्य द्वार से अंदर जाने तक समुद्र का खूब शोर सुनाई देता है, पर मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही बाहर समुद्र की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है. कह सकते हैं ये पहला ध्वनिमुक्त मंदिर है. मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना चंद्रदेव ने की थी. शिवपुराण के अनुसार जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी. कहा जाता है मोहम्मद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर में 17 बार आक्रमण कर मंदिर को नष्ट करना चाहा पर हर बार ये मंदिर बिगड़ता और बनता रहा है.

2- श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर दक्षिण का कैलाश कहे जाने वाले शैल पर्वत पर श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है. पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार से है कि एक बार भगवान शंकरजी के दोनों पुत्र श्रीगणेश और श्रीकार्त्तिकेय स्वामी विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे. इस पर बाबा शिव और मां भवानी ने कहा- तुम लोगों में से जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर यहां वापस लौट आएगा उसी का विवाह पहले किया जाएगा.  माता-पिता की यह बात सुनकर श्रीकार्त्तिकेय अपने वाहन मयूर के साथ तुरंत पृथ्वी की परिक्रमा के लिए दौड़ पड़े लेकन गणेशजी ने अपनी बुद्धि से काम लेकर अपने माता-पिता के ही सात चक्कर लगा लिए.

परिक्रमा पूरी कर जब श्रीकार्त्तिकेय लौटे तब तक गणेशजी की ‘सिद्धि’ और ‘बुद्धि’ दो कन्याओं से शादी हो गयी थी. इस बात से श्रीकार्त्तिकेय रूठ गए और पर्वत पर चले गए. उस पर्वत पर बाबा शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तब से मल्लिकार्जुन-ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रख्यात हुआ. श्री मल्लिकार्जुन शिवलिंग का दर्शन-पूजन एवं अर्चन करने वाले भक्तों की सभी सात्त्विक मनोकामनाएं पूरी होती है. यहां पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते हैं.

3- श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली नगरी उज्जैन में स्थित है. श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता यह है कि ये एक मात्र ऐसा शिव लिंग है जिसका मुख दक्षिण दिशा की ओर है इसलिए इस मंदिर को दक्षिणामुखी महाकालेश्वर मंदिर भी कहा जाता है और इस शिवर्लिंग की स्थापना नही कि गई. ये अपने आप प्रकट हुई है. यह ज्योतिर्लिंग तांत्रिक कार्यो के लिए विशेष रुप से जाना जाता है. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्रृंगार किया जाता है और प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है. भस्म के दर्शनों का विशेष महत्व है. आरती के दौरान जलती हुई भस्म से ही यहां भगवान महाकालेश्वर का श्रंगार किया जाता है. कहा जाता है कि बाबा शिव के इस स्वरुप के दर्शन ज़रूर करने चाहिए अन्यथा श्रद्धालु को अधूरा पुन्य मिलता है.

श्री महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है. उज्जैन वासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं.

4- श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के शहर इंदौर के पास है. जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है. ऊं शब्द की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से हुई है. इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं के साथ ही किया जाता है. यह ज्योतिर्लिंग औंकार जिससे ये ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है.

कहा जाता है महाराज मान्धाता ने इसी पर्वत पर अपनी तपस्या से भगवान्‌ शिव को प्रसन्न किया था. इसी से इस पर्वत को मान्धाता-पर्वत कहा जाने लगा.

इस ज्योतिर्लिंग-मंदिर के अंदर दो कोठरियों से होकर जाना पड़ता है. ओंकारेश्वर लिंग का निर्माण स्वयं प्रकृति ने किया है. इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है. पूरा मान्धाता-पर्वत ही बाबा शिव का रूप माना जाता है. इसी कारण इसे शिवपुरी भी कहते हैं. लोग भक्तिपूर्वक इसकी परिक्रमा करते हैं.

5- श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में केदार चोटी पर स्थित है. उत्तराखंड की वादियों के बीच स्थित श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में आता है. बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के रस्ते में है. केदारनाथ समुद्र से 3584 मीटर की ऊँचाई पर है. तीनो तरह से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से घिरा श्रीकेदारनाथ बड़ी ही दुर्गम जगह पर है जिससे इसकी यात्रा बहुत ही कठिन है. इस मंदिर के दक्षिण हिस्से को मंदाकनी नदी का पानी छूके निकलता है. यह तीर्थ भगवान शिव को बहुत प्रिय है. जिस प्रकार कैलाश का महत्व है, उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है.

6- श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर है. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की मान्यता है कि जो भक्त श्रृद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं. कहा जाता हैं की यहां पर राक्षस भीम जो कि राक्षस राज रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण का पुत्र था. उसने एक हजार वर्ष तक कठिन तपस्या की, उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे लोक विजयी होने का वरदान दिया. अब वह सब पर अत्याचार करने लगा. राक्षस भीम के बंदीगृह में पड़े हुए राजा सदक्षिण ने भगवान शिव का ध्यान किया और शिवलिंग की अर्चना करते रहे. उन्हें ऐसा करते देख राक्षस भीम ने अपनी तलवार से उस शिवलिंग पर प्रहार किया और उस शिव लिंग से बाबा शिव वहां प्रकट हो गए. उन्होंने उस राक्षस को वहीं जलाकर भस्म कर दिया और सदा के लिए रहने लगे.

7- श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह उत्तर प्रदेश के काशी में स्थित है. काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है. इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है. इस स्थान की मान्यता है, कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा. इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर दोबारा रख देंगे.

भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि-कामना से तपस्या करके बाबा शिव को प्रसन्न किया था. अगस्त्य मुनि ने भी इसी स्थान पर अपनी तपस्या द्वारा भगवान शिव को संतुष्ट किया था. इस पवित्र नगरी की महिमा ऐसी है कि यहां जो भी प्राणी अपने प्राण त्याग करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान्‌ शंकर उसके कान में ‘तारक’ मंत्र का उपदेश करते हैं. इस मंत्र के प्रभाव से पापी से पापी प्राणी भी सहज ही भवसागर की बाधाओं से पार हो जाते हैं.

8- श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है. इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है. भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है. कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा.

9- श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवां स्थान बताया गया है. भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है. यह स्थान झारखण्ड, पूर्व में बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है. यह श्रीवैद्यनाथ-ज्योतिर्लिंग अनंत फलों को देने वाला है. यह ग्यारह अंगुल ऊँचा है. इसके ऊपर अँगूठे के आकार का ग़ड्डा है. कहा जाता है कि यह वहीं निशान है जिसे रावण ने अपने अँगूठे से बनाया था. यहां दूर-दूर से तीर्थों का जल लाकर चढ़ाने का विधान है. रोग-मुक्ति के लिए भी इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बहुत प्रसिद्ध है.

पुराणों में बताया गया है कि जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, उसे अपने समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है. उस पर भगवान्‌ शिव की कृपा सदा बनी रहती है.

10- श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है. धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है. भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है. द्वारका पुरी से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है. इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

11- श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथ पुरम् स्थान में स्थित है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है. इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान्‌ श्रीरामंद्रजी ने की थी.

कहा जाता है कि जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए जा रहे थे तब इसी स्थान पर उन्होंने समुद्र की बालू से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था, और भगवान शिव से रावण पर विजय प्राप्त करने का वर मांगा. उन्होंने प्रसन्नता के साथ यह वर भगवान श्रीराम को दे दिया. बाबा शिव ने लोक-कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां निवास करने की सबकी प्रार्थना भी स्वीकार कर ली. तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहां विराजमान है.

12- श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद के पास है. इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है. बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मंदिर के पास स्थित हैं. यहीं पर श्री एकनाथजी गुरु व श्री जनार्दन महाराज की समाधि भी है.

 

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